कम नहीं यहां ज्यादा कमाने वाले!
दबा के लिखता था कलम...
हा भई, बडा जोर लगा के लिखता था!
पन्नो मै आती थी गेहराई...
बिना लिखें कुछ न याद आता
बिना लिखें ... कुछ न याद आता...
भला कैसे भूले जो किया था अपनो से वादा,
इस बार कमाऊंगा पहले से ज्यादा!
बडे आरामसे होता था इंतजार ईमतहान का,
बडी ही तेजी से बनता था मनसुबा छुट्टीयों का!
दिन गुजर जाते गुजर जाते दो महिने,
दिल होता उदास...
सूनाई देती धडकन की आवाज!
इस बार अच्छे नंबर दिलाना उपरवाले...
कम नहीं यहां ज्यादा कमाने वाले!
अब तो होती है पैसो की मांग!
इस बार अच्छी तरक्की दिलाना उपरवाले...
कम नहीं यहां ज्यादा कमाने वाले!
कम नहीं यहां ज्यादा कमाने वाले!
#सशुश्रीके । २८ नोव्हेम्बर २०१५
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